37 वर्षों से जुगल किशोर मूर्ति चोरी कांड रहस्य बना, प्रशासन, जनप्रतिनिधि और नागरिक समाज के साथ मीडिया की चुप्पी पर भी सवाल
37 वर्षों से जुगल किशोर मूर्ति चोरी कांड रहस्य बना, प्रशासन, जनप्रतिनिधि और नागरिक समाज के साथ मीडिया की चुप्पी पर भी सवाल
महोबा जिले के सुप्रसिद्ध जुगल किशोर मंदिर से 37 वर्ष पूर्व चोरी हुई भगवान जुगल किशोर की दुर्लभ मूर्ति का मामला आज भी अनसुलझा है। यह मामला प्रशासन की लापरवाही, जनप्रतिनिधियों की उदासीनता, और समाज की चुप्पी का प्रतीक बन चुका है। लेकिन इससे भी बड़ा सवाल यह है कि चौथे स्तंभ यानी मीडिया ने भी इस मुद्दे पर अपनी जिम्मेदारी निभाने में चूक क्यों की है?
चोरी की घटना और निष्क्रिय प्रशासन
1987 में महोबा के ऐतिहासिक जुगल किशोर मंदिर से भगवान जुगल किशोर की प्राचीन मूर्ति चोरी हो गई थी। यह घटना धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहरों की सुरक्षा पर गहरा सवाल खड़ा करती है। बावजूद इसके, प्रशासन और कानून-व्यवस्था इस मामले को हल करने में विफल रहे हैं।
कई बार नागरिकों ने मुख्यमंत्री जन सुनवाई पोर्टल और अन्य माध्यमों से शिकायत दर्ज कराई, लेकिन सरकार ने इस ओर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की।
चुप्पी साधे जनप्रतिनिधि और नागरिक समाज
इस मुद्दे पर जनप्रतिनिधियों और समाज की निष्क्रियता बेहद निराशाजनक रही है। जनप्रतिनिधियों का कर्तव्य था कि वे इस मामले को लेकर अपनी आवाज बुलंद करें, लेकिन उन्होंने इसे नजरअंदाज कर दिया। वहीं, नागरिक समाज भी संगठित होकर इस चोरी के विरोध में कोई बड़ा आंदोलन खड़ा करने में असफल रहा है।
मीडिया की चुप्पी और ज़िम्मेदारी पर सवाल
जुगल किशोर मूर्ति चोरी कांड जैसे गंभीर और संवेदनशील मुद्दे पर मीडिया का मौन रहना बेहद चिंताजनक है।
स्थानीय और राष्ट्रीय मीडिया की उदासीनता: 37 वर्षों में इस मामले को लेकर न तो कोई बड़ी खबर बनाई गई और न ही कोई जांच रिपोर्ट जारी हुई।
डरपोक रवैया: यह आशंका भी जताई जा रही है कि मीडिया ने प्रशासन और जनप्रतिनिधियों के दबाव या उनकी उदासीनता के कारण इस मामले को उठाने से परहेज किया।
मीडिया की प्राथमिकता: धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहरों की चोरी जैसे मुद्दे को प्रमुखता देना मीडिया का कर्तव्य है, लेकिन टीआरपी और विज्ञापन आधारित खबरों की दौड़ में इस मामले को दरकिनार कर दिया गया।
मामले को सुलझाने की दिशा में समाधान
1. विशेष जांच दल का गठन: इस मामले की जांच के लिए SIT का गठन हो।
2. मीडिया की सक्रियता: मीडिया को इस विषय पर जागरूकता अभियान चलाना चाहिए और प्रशासन पर दबाव बनाना चाहिए।
3. जनता और संगठनों की भागीदारी: नागरिक समाज और धार्मिक संगठनों को इस मामले में आंदोलन करना होगा।
4. सरकार की जवाबदेही: सरकार को इस चोरी के रहस्य को सुलझाने और मूर्ति को वापस लाने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे।
निष्कर्ष
जुगल किशोर मूर्ति चोरी कांड महज एक घटना नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक धरोहरों के प्रति प्रशासन, समाज और मीडिया की सामूहिक उदासीनता का उदाहरण है। मीडिया, जिसे समाज की आवाज कहा जाता है, की चुप्पी ने इस मुद्दे को और अधिक गहराई से दबा दिया है। समय आ गया है कि इस मौन को तोड़ा जाए और सभी जिम्मेदार पक्ष अपनी भूमिका निभाएं। 37 वर्षों की यह नाकामी अब और नहीं सहन की जानी चाहिए।