परमेश्वर की पर्ण-कुटी में, पावक-पीड़ा हरती है
लावणी
छंदाधारित गीत
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धर्मराज की धर्म-धरा में,
गंगा-पानी भरती है।
परमेश्वर की पर्ण-कुटी में,
पावक-पीड़ा हरती है।।
1-
पवन-डुलाती सुख-से बिजना,
शीतल नभ-की छाया है।
भक्तराज मत भूलो मद-में,
मद-से ऊँची माया है।।
गर्व-करो मत इस दुनियाँ में,
भरी-वीर से धरती है।
परमेश्वर की—————-
2-
चीर-हरण होता माया का,
क्रोध-शीत हो जाता है।
इधर-नहीं मिट्टी की काया,
तेजवान तन-पाता है।।
मोह-जाल में मोह फँसा है,
बिनती-बिनती करती है।
परमेश्वर की————–
3-
लोभ-तृप्त होता है प्रभुपग,
मूल्यवान हर-क्यारी है।
काम-देव का मन भर-जाता,
कृपा-कामिनी प्यारी है।।
धर्म-कर्म की सलिला बहती,
सुर-सरि जिसमें तरती है।
परमेश्वर की—————-
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प्रभुपग धूल