लावणी छंद — आवश्यक-चेतावनी

लावणी छंद
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आवश्यक-चेतावनी
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1-
छोड़-गरल सी कृत्रिम-खेती,
जैविक-खेती करना है।
स्वयं-देह में आग-लगाकर,
नहीं-राम जी मरना है।।
नहीं-डालना खाद-विदेशी,
विष-का भीषण झरना है।
खाद-डाल कर गोबर वाली,
सुख-का सागर भरना है।।
2-
फैल-रहे हैं रोग-भयंकर,
घुट-घुट कर जन मरते हैं।
निरख-नयन से भीषण संकट,
नहीं-मूर्ख जन डरते हैं।।
बीज-विषैले बो-कर हलधर,
संकट-पैदा करते हैं।
कृषक-कटीली करनी करके,
दुख-का सागर भरते हैं।।
3-
अभी-मान लो बात-हमारी,
आगे-संकट भारी है।
अगन-धधकती है रोगों की,
कठिन-वेदना जारी है।।
कौन-करे गोवर्धन पूजा,
निकट-नहीं गिरिधारी है।
शोक-युक्त है प्रभुपग का-मन,
हृदय-मानता हारी है।।
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प्रभुपग धूल

 

 

 

 

 

 

 

 

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