ताटंक छंद

ताटंक छंद
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1-
वृक्ष धरा नारी पानी की,
मित्रो करुण कहानी है।
नहीं भूलना बात हमारी,
इन पर कलम चलानी है।।
बन पाए मत सपना नारी,
बेटी की बेल बढ़ानी है।
बढ़ा क्षेत्रफल वन-उपवन का,
शीतल पवन बहानी है।।
2-
सूख रहा है सरिता का जल,
मिलकर मित्र बचाना है।
दूषित हो मत धरनी माता,
मिलकर शुचित बनाना है।।
अमर रहें भारत के पर्वत,
अब मत खनन कराना है।
प्रभुपग जैविक खेती करके,
भीषण रोग भगाना है।।
3-
विष डालो मत प्रिय धरनी में,
सबको ये समझाना है।
सकल सृष्टि को पावन करके,
सुख सावन बरसाना है।।
अग्नि कुपोषण की अति भीषण,
सबको साथ बुझाना है।
जैविक खेती करके मित्रो,
गेहूँ शुचित उगाना है।।
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प्रभुपग धूल

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