पञ्चचामर छंद 

पञ्चचामर छंद
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1-
हरो विशाल पाप-दोष धूम्र केतु आन के।
हरो अनेक रोग-दोष नाथ दास जान के।।
जलें सदा गणेश दीप धर्म -कर्म ज्ञान के।
बने रहें सदा समीप स्वर्ण-चाँद मान के।।
2-
सुशीलता सजी रहे विवेकता बनी रहे।
सदैव एकता रहे बसंत सी हवा बहे।।
कुसंग की निशा ढले कलंक की कुटी ढहे।
चले कुचाल चाल जो कठोर वेदना सहे।।
3-
मयंक,सूर्य,भूमि,व्योम,आप स्वर्ग धाम हो।
तुम्हीं विवेक,एक दन्त आप राम,श्याम हो।।
तुम्हीं सुगन्ध भोर की तुम्हीं समीर,शाम हो।
करो कृपा गणेश जी प्रकाशवान नाम हो।।
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प्रभुपग धूल

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