बहरे मज़ारिअ

बहरे मज़ारिअ
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21 2122 221 2122
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रोग के कहर से दिन-रात मर रहे हैं।
चाँद की सतह पे हम-बात कर रहे हैं।।

आज पोल भारी विज्ञान की दिखाऊँ।
तेजवान मच्छर आघात कर रहे हैं।।

हीन पड़ रहीं हैं अब रोग की दवाएँ।
सोच-सोच के नित अनुपात कर रहें हैं।।

देख रोगियों को मन-शोक से भरा है।
नेत्र मेघ बनकर बरसात कर रहे हैं।।

राष्ट्र में भयंकर विष फैलने लगा है।
कीट विश्व भर में उत्पात कर रहे हैं।।

हाल देख प्रभुपग को लाज आ रही है।
शीत की निशा में हिम-पात कर रहे हैं।।
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प्रभुपग धूल

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